प्रेगनेंसी का पहला महीना- लक्षण और शिशु विकास | Developments of Baby in 1st Month of Pregnancy
प्रेगनेंसी का पहला महीना- लक्षण, शिशु विकास, शारीरिक बदलाव और रखरखाव
प्रेगनेंसी कंसीव करना हर दम्पति के लिए किसी अनमोल उपहार से कम नहीं होता है। ये एक ऐसा ख़ुशी का पल या फिर सफर कह लीजिये, जिसके आगे जीवन की हर ख़ुशी कम है। महिला के गर्भधारण की सूचना मिलते ही घरवालों के ख़ुशी का ठिकाना नहीं होता है और हर कोई नन्हे शिशु के आने का इंतज़ार करने लगता है। तो आज इस लेख में हम प्रेगनेंसी के पहले महीने के बारे में जानेंगे।
प्रेगनेंसी के पहले महीने में महिला ने गर्भधारण किया है इसकी जानकारी कई बार महिला को भी नहीं हो पाती लेकिन महिला के शरीर में कुछ ऐसे बदलाव होने लगते है की जिनसे वो अंदाजा लगा सकती है की ये प्रेगनेंसी के लक्षण हो सकते हैं। ऐसे में डॉ महिला के पहले महीने की गणना महिला के पीरियड के पहले दिन से करते हैं क्यूंकि पहले महीने के 14 दिन में महिला ने गर्भधारण किया है या नहीं ये कन्फर्म ही नहीं हो पता है और असल बात तो ये है की कि महिला ने किस दिन गर्भधारण किया ये जानना नामुमकिन है।
प्रेगनेंसी के पहले महीने में महिलाओं में शारीरिक बदलाव और लक्षण
इस दौरान मासिक धर्म का रूक जाना प्रेगनेंसी का मुख्य लक्षण होता है इसके अलावा भी और लक्षण इस पहले में देखे जाते हैं लेकिन ये लक्षण कहीं न कहीं आपको भ्रमित करने वाले हो सकते हैं क्योंकि ये लक्षण पीएमएस (प्री मेंस्ट्रुअल सिंड्रोम – PMS) के लक्षण के सामान दिखाई दे सकते हैं जैसे-
स्तनों में परिवर्तन
स्तनों में संवेदनशीलता, सूजन और दर्द और इनका प्रेगनेंसी के दौरान कड़ा होना और साथ ही निप्पल का रंग गहरा होना और इनमें सिरहन महसूस होना शुरू हो जाता है हालाँकि ऐसा सभी महिलाओं के साथ हो ये जरूरी नहीं।
रक्तस्राव या स्पॉटिंग होना
जब गर्भाशय में अंडा निषेचित होता है, तब महिला को हल्का रक्तस्राव हो सकता है यह तब होता है, जब माहवारी चक्र के लिए जिम्मेदार हॉर्मोन रक्तस्त्राव प्रेरित करते हैं। इसे ब्रेकथ्रू ब्लीडिंग भी कहा जाता है और ऐसे में शरीर में ऐंठन महसूस हो सकती है। ये दोनों लक्षण गर्भधारण करने के एक सप्ताह बाद गर्भवती महिला के शरीर में दिखाई दे सकते हैं। पूरी गर्भावस्था के दौरान ऐसा एक से ज्यादा बार भी हो सकता है, इसमें कोई चिंता और घबराने की बात नहीं होती है।
थकान
प्रेगनेंसी के शुरुवात में गर्भवती महिलाओं को बिना कुछ काम के ही थकान लगना भी शुरुवाती दौर का एक लक्षण है।
पेट के निचले हिस्से में दर्द
भ्रूण के गर्भाशय में प्रत्यारोपित होने पर आपको पेट के निचले हिस्से में दर्द महसूस होता है।
मॉर्निंग सिकनेस (मितली )
पहले महीने में सुबह-सुबह जी मिचलाने, उल्टी होने और चक्कर आने जैसे समस्या हो सकती है।
सूंघने की शक्ति बढ़ना
प्रेगनेंसी के पहले महीने में शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलावों के चलते गर्भवती महिला की सूंघने की क्षमता बढ़ जाती है।
खान पान की चीज़ों में पसंद नापसंद
इस दौरान आपको खाने पीने की पसंदीदा और नापसंद में पसंद की चीज़ों में बदलाव हो सकता है यानी की जो आपको खाने में अच्छा नहीं लगता था वो इस दौरान अच्छा लगे और जो अच्छा लगता था उससे इस दौरान नफरत हो जाये।
मूड स्विंग
मूड स्विंग्स यानि की मूड बदलना, शुरुवात में गर्भवती महिला के व्यवहार में काफी उतार-चढ़ाव नजर आने लगता है, यह उतार-चढ़ाव गर्भवती महिला के शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलावों की वजह से होता है। इस दौरान वे किसी भी बात पर बेवजह चिढ़ सकती है या उन्हें इस दौरान बेवजह रोना आ सकता है।
पीठ में दर्द होना
कई महिलाओ को इस दौरान पीठ दर्द की भी शिकायत हो जाती है।
सिर में दर्द
गर्भावस्था के शुरुआती दिनों में शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलावों के कारण गर्भवती महिला को सिर दर्द होने की शिकायत हो सकती है।
कब्ज और सीने में जलन
इस दौरान प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन के बढे स्तर की वजह से कब्ज हो सकता है साथ ही सीने में जलन होना भी इस दौरान सामान्य सी बात है तो ऐसे में खबराएं नहीं, ये गर्भावस्था में सामान्य हैं।
बार-बार पेशाब आना
शरीर में प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का स्तर बढ़ने के कारण प्रेगनेंसी के पहले महीने में गर्भवती महिला को बार-बार पेशाब लगने की समस्या हो सकती है।
गर्भ में शिशु का विकास (सप्ताह 1-4)
जैसे ही महिला का अंडाणु शुक्राणु द्वारा निषेचित किया जाता है तो इस निषेचन की प्रक्रिया के दौरान अंडा विकसित होकर कई कोशिकाओं में विभजित हो जाता है, कोशिकाओं के इस संग्रह को युग्मनज कहा जाता है, चौथे से छठे दिन के बीच यह जाइगोट कई कोशिकाओं में विभाजित हो जाता है। इसके बाद ये कोशिकाएं इकट्ठा होकर गेंद जैसा आकार ले लेती हैं। इसे ‘ब्लास्टोसिस्ट’ कहते हैं और ये युग्मनज कुछ ही दिनों में फैलोपियन ट्यूब से गर्भ की और की और आने लगता है।
शिशु का आकार और माप
इस समय ये शिशु की बिलकुल शुरुवाती अवस्था होती है तो प्रेगनेंसी के इन 4 हफ़्तों में शिशु खसखस के बीज जितना होता है। चौथे सप्ताह के अंत तक भ्रूण का दिल एक मिनट में 65 बार धड़कने लगता है। और इस महीने के अंत तक शिशु का माप लगभग ¼ इंच से भी कम होता है।
हालाँकि ये बहुत छोटा सा होता है लेकिन उसके अंगों और प्लेसेंटा का निर्माण होना शुरू हो जाता है और अब ये युग्मनज से भ्रूण (एम्ब्रोयो) कहलाता है और यही कोशिकाओं का गुच्छा आगे विकसित होकर शिशु के अंग और ऊत्तक बनते हैं।
तो ऐसे में कोशिकाएं तीन परतों में विभाजित होने लगती हैं
1. सबसे ऊपरी परत में, न्यूरल ट्यूब नामक एक खोखली संरचना जिसमे शिशु का मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी, मेरु-रज्जु और नसें विकसित होंगी और शिशु की त्वचा, बाल और नाखून भी इसी परत से विकसित होंगे।
2. मध्य परत में शिशु का शिशु का दिल और रक्त संचरण तंत्र अस्थि-पंजर (हड्डियां) और मांसपेशियां विकसित होने लगेंगी।
3. तीसरी परत में आंतों, फेफड़ों और मूत्रीय प्रणाली के विकास की शुरुआत होगी।
इस भ्रूण के चारों तरफ एमनियोटिक की एक थैली होती है, जो तरल से भरी होती है।इस तरल का पदार्थ का होना शिशु के पालन के लिए बहुत ज़रूरी होता है| ये पूरी गर्भवस्था में गर्भस्थ शिशु का बचाव करती है
पहले महीने में महिला का आहार कैसा हो
गर्भधारण के बाद से ही महिला को ज्यादा पोषक त्वत्तो की आवश्कता होती है क्यूंकि महिलाओं के शरीर को अब दोगुना काम करना पड़ता है इस बढ़ती जरूरत को पूरा करने के लिए महिला को अच्छा और उचित पोषण चाहिए होता है, उन्हें क्या खाना चाहिए और क्या नहीं ये जानना उनके लिए बहुत जरूरी है तो आइये जानते है आपको पहले महीने में कैसा आहार लेना और क्या नहीं खाना है।
प्रेगनेंसी के पहले महीने में क्या खाएं
अगर अपने प्रेग्नेंसी प्लानिंग के दौरान फोलिक एसिड सप्लीमेंट नहीं लिया तो प्रेग्नेंसी के इस शुरुआती दौर में आपको फोलिक एसिड यानि फोलेट से भरपूर खाद्य पदार्थ, जैसे- ब्रोकली व संतरा आदि का सेवन जरूर करना चाहिए । फोलिक एसिड गर्भ में पल रहे बच्चे को जन्मजात विकारों जैसे कि स्पाइना बिफिडा जैसे न्यूरल ट्यूब दोष से बचाता है। 12 सप्ताह की गर्भवती होने तक आपको रोजाना 5 मिलीग्राम लेना चाहिए।
- महिला को विटामिन-बी6 से भरपूर खाद्य पदार्थ, जैसे- साबूत अनाज, सूखे मेवे और केले खाना शुरू कर देना चाहिए।
- गर्भावस्था की शुरुआत में फाइबर युक्त फलों का सेवन करना चाहिए। तो महिलाओ को चाहिए की वो एक दिन में अलग अलग तीन फलों का सेवन जरूर करें
- कार्बोहाइड्रेट की पूर्ति के लिए शर्करा वाली चीजों को अपने खान-पान में शामिल करना चाहिए।
- दूध से बने उत्पादों या केवल दूध के सेवन को भी गर्भावस्था के पहले महीने में फायदेमंद माना जाता है।
- अगर आप मांसाहारी हैं, तो मांस खाना फायदेमंद होता है ऐसे में कम पारे वाले समुद्री भोजन के अलावा अच्छे से पका हुआ मांस खाने की सलाह दी जाती है।
- आयरन से भरपूर खाद्य पदार्थ , जैसे- पालक व चुकंदर, टोफू, बीन्स, गुड़ इत्यादि को अपने भोजन में शामिल करना चाहिए।
- उक्त सभी खाद्य पदार्थों से आपके शरीर को प्रोटीन भी अच्छी मात्रा में मिल जाता है
- और शुरुआती जांच में अगर आपके शरीर में विटामिन डी की कमी पाई जाती है तो डॉक्टर की सलाह पर आपको विटामिन डी की उचित खुराक लेनी चाहिए।
प्रेगनेंसी के पहले महीने में क्या न खाएं
प्रेगनेंसी की शुरुआत में कुछ चीजों जिन्हें खाने से महिलाओं को परहेज़ करना है जो गर्भवती महिला और उसके भ्रूण को नुकसान हो सकता है। कुछ ऐसी ही चीजों के बारी में नीचे बताया गया है :
- जंक फूड और शराब- गर्भावस्था के दौरान जंक फूड, शराब व तंबाकू का सेवन बिलकुल नहीं करना चाहिए, और तो और कैफीन वाली चीजें, जैसे- चाय, कॉफी व चॉकलेट का सेवन कम कर देना चाहिए।
- कच्चा पपीता और अनानास- फलों में ये दो फल कच्चा पपीता और अनानास गर्भावस्था के शुरुआती दिनों में खाने से बचना चाहिए।
- समुद्री भोजन- अगर आप समुद्री भोजन के शौक़ीन हैं तो ध्यान रखें अधिक पारे का स्तर वाले भोजा गर्भ में शिशु को नुक्सान दे सकता है इसलिए ध्यान रखें कि कम पारे वाला समुद्री भोजन ही इस दौरान सेवन में लें।
- पाश्चराइज्ड डेरी वाली चीज़ें – गर्भवती महिला को इस दौरान पाश्चराइज्ड दूध से बने चीज़ को खाने से परहेज करना चाहिए क्यूंकि ऐसी चीज़ों में हानिकारक बैक्टीरिया होने से खाद्य पदार्थ विषैला होने का खतरा रहता है।
- पैक्ड और डिब्बाबंद चीजें- गर्भवती को डिब्बाबंद चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
- कच्चा और अधपक्का अंडा या मांस – ये बहुत ध्यान रखने वाली बात है की इस दौरान अधपक्का और कच्चे अंडे का सेवन भूल के भी ना करें. क्यूंकि इनमें सालमोनेला और लिस्टेरिया नाम के बैक्टीरिया पाए जाते हैं, जो की गर्भ में शिशु के लिए बहुत हानिकारक होते हैं।
प्रेगनेंसी के पहले महीने में किन बातों का अवश्य ख्याल रखना चाहिए
- व्यायाम करें- नॉर्मल डिलीवरी और स्वस्थ गर्भावस्था के लिए जरूरी है कि रोजाना थोड़ा व्यायाम करें।
- चहल-कदमी, टहलना- इस दौरान टहलना बहुत जरूरी है ताकि ब्लड सर्कुलेशन सही हो और प्रेगनेंसी की छोटी मोटी समस्याओं से भी आराम मिले।
- खान पान सही रखें- अपनी खान-पान की आदतों में जरूरी सुधार करें और डॉक्टर की सलाह लेकर अपना डाइट चार्ट बनाएं।
- फाइबर युक्त भोजन खाएं- अपने खानपान में इस दौरना फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ शामिल करें । इससे गर्भवती महिला को कब्ज और अपच की समस्या नहीं होती है। डॉक्टर की सलाह लेकर जरूरी विटामिन और सप्लीमेंट्स का सेवन शुरू करें।
- खूब पानी पिए- महिला को इस दौरान दिन में कम से कम आठ से दस गिलास पानी पीना चाहिए।
- आराम करें- प्रेगनेंसी के पहले महीनों में अधिक आराम और पर्याप्त सोना चाहिए ।
- सकारात्मक बनें- हमेशा सकारात्मक सोचें और ज्यादा से ज्यादा खुश रहने की कोशिश करें।लगातार ऐसे लोगों के संपर्क में रहें, जिन्हें गर्भावस्था से जुड़ी जानकारी और अनुभव हो।
- सही डॉक्टर का चुनाव- अपनी नियमित जांच के लिए सही डॉक्टर का चुनाव करें। इसके लिए आप उन महिलाओं से मदद ले सकती हैं, जिनकी डिलीवरी पहले हो चुकी हो।
- वित्तीय स्थिति और बीमा कराएं- प्रेगनेंसी, डिलीवरी और डिलीवरी के बाद होने वाले खर्चों के लिए वित्तीय योजनाएं बनाना शुरू कर दें, हो सके तो ऐसा स्वास्थ्य बीमा कराएं, जिससे गर्भावस्था के दौरान जरूरी जांच, इलाज और सुरक्षित प्रसव की सुविधा मिले।
प्रेगनेंसी के पहले महीने में क्या न करें
- डाइटिंग को टाटा- जी हाँ दोस्तों इस दौरान बिल्कुल भी डाइटिंग न करें क्योंकि गर्भावस्था के शुरुवाती दौर में गर्भवती महिला के शरीर को ज्यादा पोषक तत्वों की जरूरत होती है। ऐसे में डाइटिंग करने से भ्रूण को नुकसान हो सकता है।
- भारी और झुकने वाले कामों से बचें- प्रेगनेंसी में भारी भरकम और ज्यादा झुकने वाले कामों को करने से बचना चाहिए। और ऐसे में भारी चीजें न उठाने से आपके पेट पर दबाव पड़ सकता है, जिससे शिशु के विकास में बाधा आ सकती है और इतना ही नहीं ये ऐसे में आपकी गर्भपात का कारण भी बन सकता है।
- अपने से दवाई न लें- अगर आपको इस दौरान कोई भी छोटी बड़ी समस्या हो जाये तो अपने आप के डॉक्टर न बने। गर्भावस्था के दौरान डॉक्टर की सलाह लिए बिना कोई भी दवा नहीं खानी चाहिए।
- यात्रा से बचें- इस दौरान यानी की शुरुवाती दिनों में लंबी यात्रा करने से बचें, क्योंकि गर्भावस्था के पहले महीने में गर्भपात का खतरा बहुत ज्यादा बना होता है, इसलिए इस दौरान लंबी यात्रा करने से बचना चाहिए।
- ऊंची सैंडल न पहनें- प्रेगनेंसी के पहले महीने से ही अपनी चप्पल का सही चुनाव करे, आपकी चप्पल ऊंची एड़ी वाली नहीं होनी चाहिए. अगर आप अभी तक हाई हील्स पहनते आये हैं तो ऐसी सैंडल प्रेगनेंसी में न पहनें। गर्भावस्था के दौरान ऐसे सैंडल पहनने से पैरों में दर्द हो सकता है, इससे पैर मुड़ने और गिरने का खतरा बढ़ जाता है।
- तनाव से दूर रहें- प्रेगनेंसी के दौरान आपको तनाव बिलकुल नहीं लेना चाहिए क्योंकि तनाव आपके शिशु के विकास को बाधित कर सकता है, प्रेगनेंसी में महिलाओं को बेवजह का तनाव भी हो जाता है जो महिला को कब घेर ले पता नहीं चलता तो इससे बचने के लिए अच्छी किताबें पढ़ें या बढ़िया संगीत सुनें और टहलना भी जरूरी है।
- सॉना बाथ न लें- अगर आप अभी तक हॉट टब बाथ या सॉना बाथ ले रही हों तो अब प्रेगनेंसी में इसे न लें। सोना बाथ आपके शरीर के तापमान अचानक से कम कर सकता है जो कि 70 डिग्री सेल्सियस से 100 डिग्री सेल्सियस के बीच हो सकता है और ये तापमान गर्भावस्था के लिए सही नहीं माना जाता।
तो ये उक्त सभी मिली जुली चीज़ें हैं जो प्रेगनेंसी के पहले महीने में महिला को जाननी जरूरी है उम्मीद है की आपको ये जानकारी पसंद आयी होगी. और प्रेगनेंसी के ऐसे ही आगे आने वाले महीनो के बारे में जानने के लिए हमारे अन्य लेख भी पढ़ें.
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